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यह कैसे संभव है कि समस्त देवता कश्यप मुनि के पुत्र हैं? क्या कश्यप मुनि देवता थे या साधारण मनुष्य? उन्होंने दूसरे जीवों को भी कैसे जन्म दिया?

यह कैसे संभव है कि समस्त देवता कश्यप मुनि के पुत्र हैं? क्या कश्यप मुनि देवता थे या साधारण मनुष्य? उन्होंने दूसरे जीवों को भी कैसे जन्म दिया?

यह सवाल हमारे बंधु श्री Sayanha Kshtri द्वारा पूछा गया था। सायनहा जी सवाल पूछने के लिए धन्यवाद और विलम्ब के लिए हम क्षमा चाहते हैं। सवाल उत्तम है क्यूँकि यह भ्रांति भी समाज में फैली हुई है और इसका स्पष्टीकरण आवश्यक है।

जैसा कि हम पहले ३३ करोड़ देवी देवता वाले पोस्ट में स्पष्ट कर चुके है की हिन्दू शास्त्र ३३ प्रकार के देवताओं की स्तुति करता है। श्री अग्नि पुराण में 33 प्रकार के देवताओं की व्याख्या इस प्रकार है :
8 वसु- आप, ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्युष और प्रभाष।
11 रूद्र – हर, बहुरुप, त्रयँबक,अपराजिता, बृषाकापि, शँभू, कपार्दी, रेवात, मृगव्याध, शर्वा, और कपाली।
12 आदित्य- विष्णु, शक्र, तव्षटा, धाता, आर्यमा, पूषा, विवसान, सविता, मित्र, वरुण, भग और अंशु
1 देवराज इंद्र और
1 प्रजापति या ब्रह्माजी

इस प्रकार 8+11+12+1+1=33 श्रेणी या प्रकार के देवता हुए।

8 वसुओं, 11 रुद्रों, तथा 12 आदित्यों की उत्पत्ति कैसे हुई

सृष्टि के रचना क्रम में श्री ब्रह्मा जी ने सनक, सनंदन, सनातन, सनतकुमार आदि पुत्रों को अपने तेज़ से, 11 रुद्रों को क्रोध से तथा मारिचि, अत्रि, अंगिरा, पुलसत्य, पुलह, कृतु, नारद और वसिष्ठ आदि ब्रह्म पुत्रों को मन से उत्पन्न किया । उसके पश्चात ब्रह्मा जी ने अपने शरीर के दो भाग किए। आधे भाग से वे पुरुष हुए तथा आधे भाग से स्त्री बन गए। पुरुष स्वयंभावु मनु हुए तथा स्त्री शतरूपा हुईं। इनसे ही मानवीय सृष्टि का प्रादुर्भाव हुआ।

मनुवंश में प्राचीनबहिर्शि नामक राजा से प्रचेता तथा प्रचेता से दक्ष उत्पन्न हुए। दक्ष ने अपनी मानसिक दृष्टि से चर, अचर, द्विपद और चतुष्पद आदि बहुत से प्राणियों की रचना की। प्रचेता पुत्र दक्ष से पूर्व उत्पन्न हुए लोगों की सृष्टि संकल्प, दर्शन और स्पर्श मात्र से होती थी किंतु दक्ष के पश्चात स्त्री पुरुष के संयोग द्वारा सृष्टि प्रचलित हुई है
संकल्पपाद दर्शनात स्पर्श्यात पूर्वेंशा सृष्टि रुचयते।
दक्षात प्राचेतसदूधरन्व सृष्टिमैथुनसंभवा ।।
( श्री मत्स्यपुराण, 5। 2)

दक्ष द्वारा जब संकल्प से देव, ऋषि और नागों की सृष्टि करने पर भी जीव लोक का विस्तार नही हुआ तब दक्ष ने पंचयजानि के गर्भ से एक हज़ार पुत्रों को पैदा किया जो हय्रक्षव कहलाये। उन दक्ष पुत्रों को सृष्टि के लिए उत्सुक देख, नारद उनके पास आकर बोले की सृष्टि की रचना से पहले समस्त पृथ्वी के विस्तार तथा उसके विस्तार को तो जान लो। नारद जी की बात सुन कर वे विभिन्न दिशाओं में चले गए तथा कभी लौट कर नही आए ।

अपने पुत्रों को नष्ट हुआ जान कर दक्ष ने वरिणी के गर्भ से पुनः एक हज़ार पुत्रों को उत्पन्न किया जो शबल नाम से प्रसिद्ध हुए। सृष्टि की रचना को उद्यत उन भाइयों से भी नारद जी ने पुनः सृष्टि रचना से पूर्व पृथ्वी का विस्तार जान ने तथा अपने भाइयों का पता लगाने को कहा । नारद जी के वचन सुन कर वे सभी भाई उसी मार्ग पर गए जिस मार्ग पर उनके बड़े भाई गए थे और पुनः वापस नही आए। (तभी से बड़े भाई को ढूँढने जाने के लिए छोटे भाई को भेजने को अच्छा नही माना जाता। )

शबल पुत्रों के भी नष्ट हो जाने पर दक्ष ने साठ कन्याएँ उत्पन्न की और 10 धर्म को, 13 कश्यप को, 27 चंद्रमा को, 4 अरिष्टनेमी को, 2 शुक्र को, दो कुशाश्रव को तथा 2 कन्याएँ अंगिरा को सृष्टि सृजन के प्रदान कर दीं।

चंद्रमा द्वारा उनकी नक्षत्ररूपिनि पत्नियों के गर्भ से 8 वसु- आप, ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्युष और प्रभाष उत्पन्न हुए।

दक्ष की कन्या सुरभि ने कश्यप जी ने अंश से 11 रुद्रों- हर, बहुरुप, त्रयँबक,अपराजिता, बृषाकापि, शँभू, कपार्दी, रेवात, मृगव्याध, शर्वा, और कपाली को उत्पन्न किया।

दक्ष पुत्री अदिति ने कश्यप जी के अंश से 12 आदित्य- विष्णु, शक्र, तव्षटा, धाता, आर्यमा, पूषा, विवसान, सविता, मित्र, वरुण, भग और अंशु उत्पन्न किए। चाक्षुष मन्वन्तर में जो तुषित नामक 12 देवता थे वही वैवस्वत मन्वन्तर में अदिति के गर्भ में आए।

कुशाश्रव के उनकी दो पत्नियों से दिव्य आयुध उत्पन्न हुए। सम्पूर्ण दिव्यास्त्र कुशाश्रव के पुत्र हैं।

इस प्रकार स्पष्ट है की सम्पूर्ण देवताओं की रचना कश्यप जी ने नही अपितु ब्रह्मा स्वरूप मनुवंशज दक्ष ने की। 8 वसु, 11 रूद्र तथा 12 आदित्य दक्ष कन्याओं द्वारा क्रमशः चंद्रमा तथा कश्यप जी के अंश से उत्पन्न हुए।

जहाँ तक कश्यप ऋषि के देवता या मनुष्य होने का सवाल है तो दिव्य ज्ञान से सम्पन्न ऋषि जिनका अस्तित्व दक्ष प्रजापति के समय था उन्हें साधारण मनुष्य ना कह कर देवता ही कहा जा सकता है।

कश्यप जी द्वारा अन्य जीवों को उत्पन्न करने का कोई प्रमाण किसी भी पुराण – श्री अग्निपुराण, श्री विष्णुपुराण, श्री मत्स्यमहापुराण तथा श्री ब्रह्मवैवृत पुराण आदि, जिनमे कश्यप ऋषि आदि के वंश का वर्णन किया गया है, में नही पाया जाता। अन्य जीवों की उत्पत्ति या तो स्वयं ब्रह्मा जी द्वारा की गयी थी या फिर मनुवंशज दक्ष द्वारा।

इसलिए यह धारणा की समस्त देवता व अन्य जीव कश्यप ऋषि द्वारा उत्पन्न किए गए हैं उचित नही है। देवताओं के उत्पत्ति के विषय में कहा गया है:

एते युग सहत्रांते जायन्ते पुनरेव हि ।
सर्वदेवगणास्तात त्रयरिंत्रशत्तु कामजा:।।
(श्री हरिवंशपुराण 3। 33) (श्री मतस्यपुराण 6।7)
अर्थात – जैसे आकाश में सूर्य के उदय और अस्तभाव बार बार होते रहते हैं, उसी प्रकार देवता युग युग में उत्पन्न और विनष्ट होते रहते हैं।

।।ॐ नमो भगवते वासुदेवाय:।।
(संदर्भ श्री अग्नि पुराण – अध्याय – 19-20, श्री मतस्यपुराण – अध्याय 5-6, श्री हरिवंशपुराण – अध्याय – 3, श्री ब्रह्मवैवरत पुराण, ब्रह्मखंड)

Author: मनीष

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